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तेरी वेवफाई

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दर्द हद़ से बढ़ जाता है,ज़ब वेवफ़ाई तेरी याद आती है।

ख़ुद से भी मैं रूठ जाता हूँ,मेरी परछाई भी रुठ जातीहै।


आसूँ  निकलते नहीँ ,रोने की कितनी भी  कोशिश कर लूं।

दर्द से दहकती रेत का दरिया ,सभी अश्कों को सुखा देती है।


दिल में भरे गुब़ार इतने,  इक आह भी न निकल पाए।

म़हफिलों की  क्या बात करें ,तन्हाई भी बहुत सताए ।


आखों के  सामने जब  कभी ,परछाई तेरी दिख जाए।

उसे पकड़ने की कोशिशों में ,बेचैनी  बहुत   बढ़ जाए।


ज़माने को ये लगता है, मैं इक हारा हुआ खिलाड़ी हूँ।

मोहब्बतों के इस खेल मे,इक दिलका लुटा ज़ुआरी हूँ।


स्नेहलता पाण्डेय \\\'स्नेह\\\'

नईदिल्ली

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